Page Nav

HIDE

Grid

GRID_STYLE

Pages

Custom Header

{fbt_classic_header}
latest

खेलो में व्याप्त भ्रष्टाचार की असली जड़ ?

  काफी दिनो से प्रिंट और सोशल मीडिया पर खेल संस्थाओ के विरुद्ध एक नकारात्मक मुहीम सी चल रही हे, इसके पीछे कारण, ओलिंपिक शब्द का गलत प्रयोग औ...

 

काफी दिनो से प्रिंट और सोशल मीडिया पर खेल संस्थाओ के विरुद्ध एक नकारात्मक मुहीम सी चल रही हे, इसके पीछे कारण, ओलिंपिक शब्द का गलत प्रयोग और खिलाडियों को नेशनल के नाम पर गुमराह करना, कुछ लोगो द्वारा राष्ट्रिय और अंतराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओ को गठन करके नेशनल एवं इंटरनेशनल इवेंट कराकर खिलाडियों से मोटी फीस बसुलना.  अगर वास्तव में कुछ गलत हे तो ओलिंपिक संघ और खेल मंत्रालय ने आज तक किसी के विरुद्ध कोई कानूनी कार्यवाही क्यों नही की.

खेल संस्थाओ के विरुद्ध कुछ वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा लिखित लेखो और सोशल मीडिया पर केवल एक पक्ष देखकर  सभी खेल संस्थाओ को बदनाम किया जा रहा हे, जबकि कुछ खेल संस्थाए खिलाडियो के लिए रात दिन मेंहनत करके खेलो का आजोजन करती हे और कुछ लोग उनके आजोजन के केवल नकारात्मक पहलुओ को समाज में दिखाकर उनको बदनाम करने का काम करते हे, जबकि खेल संस्थाओ की महनत और लगन को नजरंदाज नही किया जा सकता.

अगर हम खेल संस्थाओ के दुसरे पहलू पर नजर डाले तो कुछ चीजों को नजरंदाज़ नही किया जा सकता, जब कोई खेलप्रेमी, पूर्व खिलाडी या प्रक्षिशक खेलो के विकास हेतु किसी संस्था के गठन की नीव रखता हे, तो सबसे पहले खेलो से संबधित लोगो की मीटिंग करके संस्था को सोसाइटी/ ट्रस्ट/ कंपनी अधिनियम के अंतर्ग्रत सरकार के रजिस्ट्रार के पास पंजीकरण हेतु आवेदन करता हे तो जहाँ पर 500-1000 रूपये फीस होती हे वहां रजिस्ट्रार और उसके दलालों द्वारा उससे 10 - 20 हजार रूपये वसूले जाते हे, उसके बाद खेल संस्था को चलने हेतु उसके ऑफिस के खर्चे, वेबसाइट डेवलपमेंट चार्ज, वार्षिक इंटरनेशनल सदस्यता शुल्क सहित खेल संस्था संचालक लाखो रूपये अपने पास से खर्च करता हे. जब संस्था द्वारा किसी खेल का आजोजन किया जाता हे, तो सबसे पहले उसे स्टेडियम की आवश्यकता पड़ती हे, जिसके लिए सरकार द्वारा बनाये गये आउटडोर स्टेडियम का चार्ज 10-20 हजार प्रतिदिन और इंडोर स्टेडियम 50 हजार से 1 लाख प्रतिदिन होता हे और प्राइवेट और यूनिवर्सिटस के खेल परिसरों का चार्ज इससे भी अधिक. किसी भी खेल आजोजन हेतु 3-5 दिन के लिए स्टेडियम बुक करना ही काफी नही होता, कई स्टेडियम में एसी, लाइट और सिक्यूरिटी चार्जेज अलग से देने होते हे, साथ की खिलाडियों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था के साथ साथ सिक्यूरिटी, सीसीटीवी, खेल उपकरण, खेलो को आजोजित करने हेतु तकनिकी ऑफिसियल, जिनको संस्था द्वारा फ्री रहने खाना और अतिरित्क्त चार्ज भी देना पड़ता हे, उसके बाद अगर मीडिया और टीवी पर लाइव करना हे तो भारतीय चैनल 10-20 लाख प्रतिदिन से कम में बात ही नही करते हे. साथ ही किसी भी शहर में इवेंट आजोजित करने से पहले पुलिस, फायर और ट्रेफिक की एन ओ सी भी जरुर लेनी होती हे, इसके लिए भी संबधित विभाग द्वारा आजोजक पर दवाब बनाकर कुछ न कुछ कमी निकालकर पैसे ऐंठे जाते हे.

संस्था के पंजीकरण से लेकर इवेंट आजोजित करने तक आजोजक और संस्था के संचालक अपनी जेब से लाखो रूपये खर्च करते हे और गेम्स में एंट्री फी के नाम पर अगर 1000-2000 रूपये फीस आपने खिलाडियों से लिया तो बहुत बड़ा अपराध कर दिया, मीडिया आपको गुनाहगार साबित करेगा और लिखेगा – भोले भाले खिलाडियों से खेल के नाम पर लाखो की ठगी. 

हद हो गयी दोगलेपन की, एक संस्था रात दिन मेंहनत करके खिलाडियों के लिए एक प्लेटफार्म तेयार करती हे और राष्ट्रिय स्तर पर खेल आजोजित करती हे, जबकि खेलो के नाम पर प्रायोजक और मीडिया सपोर्ट केवल क्रिकेट और क्रिकेट में हे, बाकी सभी खेल और संस्थाओ पर कोई ध्यान नही देता. अगर प्रयोजक के लिए जाये तो 12A/ 80G चाहिए और इसके लिए 3-5 साल की ऑडिट रिपोर्ट और आई टी आर, जिसके लिए आपको ऑडिटर चाहिए और अगर 12A नही तो हर वर्ष सरकार को टैक्स दीजिये, सभी आजोजन की पक्के बिल, होटल बिल, स्टेडियम बिल, ट्रांसपोर्ट बिल, मैडल ट्राफी बिल सभी पर टैक्स और फिर टैक्स पर टैक्स और सीए और अधिवक्ता की फीस  अतिरिक्त. गेम यही ख़त्म नही होता अगर आपको अपना खेल/ संस्था को मिनिस्ट्री या इंडियन ओलिंपिक से मान्यता कराना हो तो सभी कागजात सम्पूर्ण होने पर स्कूल गेम्स में 4 – 7 लाख और मिन्सिट्री/ ओलिंपिक कमेटी में 20 -25 लाख और चाहिए. 

निष्कर्ष- सभी जगह पर पंजीकरण से लेकर मान्यता तक सरकार और उसके अधिकारियो द्वारा खेल संस्थाओ का दमन और लूट की जा रही हे और बदनाम संस्था को किया रहा हे की खिलाडियों से एंट्री फीस लेकर गेम कराए जाते हे. जब सरकार खेल संस्थाओ की मदत की जगह, उल्टा उनसे स्टेडियम के नाम पर, टैक्स के नाम पर मान्यता के नाम के पर पैसा लेती हे तो खेल संस्थाओ द्वारा एंट्री फी लेना कैसे गलत हो गया. 


- मास्टर बी के भारत