आगरा, उत्तर प्रदेश – आगरा के बाराखंबा रेलवे फाटक के पास दशकों से समाजसेवा और जनकल्याण से जुड़ा ‘अंबेडकर भवन’ प्रशासन की ओर से अतिक्रमण बताकर...
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह भवन वर्षों से दलित, पिछड़े, वंचित वर्गों के सामाजिक व शैक्षिक उत्थान का केंद्र रहा है। इसे अतिक्रमण बताकर हटाने की कार्रवाई को लोग डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों और विरासत के प्रति सरकार के दृष्टिकोण पर सवाल उठाने वाला कदम मान रहे हैं।
एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, "सरकार एक ओर बाबा साहेब के नाम पर योजनाएं चलाती है और दूसरी ओर उनके नाम से जुड़े भवनों को तोड़ने का आदेश देती है। क्या यही सरकार का अंबेडकर प्रेम है?"
इस मुद्दे पर स्थानीय संगठनों और दलित समुदाय के नेताओं ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की है। उनका कहना है कि सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और न्यायपूर्ण समाधान निकालना चाहिए।
प्रशासन को ज्ञापन सौंपा जाएगा – सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से इस कार्रवाई को रोकने और पुनर्विचार करने की अपील की है।
कानूनी विकल्पों पर विचार – यदि प्रशासन अपनी कार्रवाई पर अडिग रहता है, तो इस फैसले को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन – जनता ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर सरकार तक अपनी आवाज़ पहुंचाने की योजना बनाई है।
प्रशासन का कहना है कि यह रेलवे की जमीन पर बना हुआ अतिक्रमण है और इसे हटाने का आदेश दिया गया है। हालांकि, सामाजिक संगठनों का दावा है कि यह भवन दशकों से मौजूद है और इसे जनसेवा केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
यह मामला न केवल एक ऐतिहासिक भवन के अस्तित्व का सवाल है, बल्कि यह डॉ. अंबेडकर के विचारों और समाज सेवा केंद्रों की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है और क्या जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस फैसले पर पुनर्विचार किया जाएगा।