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"भारत कुमार" मनोज कुमार – एक सच्चे देशभक्त कलाकार को श्रद्धांजलि

प्रारंभिक जीवन: मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ ग...

प्रारंभिक जीवन:

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया और नई शुरुआत की। उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी था, लेकिन सिनेमा की दुनिया में उन्होंने 'मनोज कुमार' नाम से अपनी पहचान बनाई जो दिलीप कुमार के किरदार 'मनोज' से प्रेरित था।

एक्टर से आइकन तक का सफर:

मनोज कुमार जी ने हिंदी सिनेमा में 1957 में 'फैशन' फिल्म से करियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1960 के दशक में। शहीद’ (1965) में भगत सिंह की भूमिका निभाकर उन्होंने न केवल दर्शकों का दिल जीता, बल्कि अपने भीतर छिपे देशभक्त को परदे पर उतार दिया।

इसके बाद उन्होंने उपकार’ (1967) बनाई एक फिल्म जिसने उन्हें सिर्फ अभिनेता नहीं, बल्कि एक विचार बना दिया। इस फिल्म में भारत का किसानऔर भारत का सपूतएक साथ दिखा। 'उपकार' की सफलता के बाद उन्हें भारत कुमारकी उपाधि दी गई।

"भारत कुमार" एक विचार, एक भावना:

मनोज कुमार की फिल्मों में केवल मनोरंजन नहीं था, उसमें आत्मा थी – देशभक्ति, संस्कृति, नैतिकता और सामाजिक संदेश। उनकी प्रमुख देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों में शामिल हैं:

  • शहीद – भगत सिंह के रूप में अमर योगदान।
  • उपकार – “जइ सी जवान, जइ सी किसानका उद्घोष।
  • पूरब और पश्चिम – सांस्कृतिक पहचान बनाम पश्चिमीकरण।
  • रोटी कपड़ा और मकान – आम आदमी के संघर्ष की गाथा।
  • क्रांति – स्वतंत्रता संग्राम का जोशीला चित्रण।

इन फिल्मों में नायक केवल एक व्यक्ति नहीं था, बल्कि पूरे देश की आवाज़ बन जाता था।

मनोज कुमार की पहचान:

उनका चेहरा गंभीर, आँखों में देश का सपना, और संवादों में आग होती थी। उन्होंने कैमरे के पीछे भी उतना ही योगदान दिया जितना परदे पर। वे लेखक, निर्देशक और निर्माता भी थे। उनका हर काम एक उद्देश्य के साथ होता — भारत को जागरूक करना

सम्मान और पुरस्कार:

उनके योगदान को देश ने भी सलाम किया:

  • पद्म श्री (1992)
  • राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
  • फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
  • दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (2015)

अंतिम विदाई पर अमर यादें:

आज जब हम मनोज कुमार जी को अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो लगता है जैसे एक युग समाप्त हुआ हो। लेकिन सच्चाई यह है कि देशभक्ति की जो लौ उन्होंने जलाई थी, वह कभी बुझने वाली नहीं।

उनकी फिल्मों की वो पंक्तियाँ आज भी हमारे कानों में गूंजती हैं:

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती…”

श्रद्धांजलि:

मनोज कुमार जी को नमन
उन्होंने हमें सिखाया कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक मिशन हो सकता है।
उनका जीवन, उनके विचार, और उनकी कला आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।


"भारत कुमार" अब हमारे बीच भले न हों, लेकिन उनकी आत्मा हर उस व्यक्ति में जीवित है जो अपने देश से प्रेम करता है।

🕊️ शत-शत नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।