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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद के आंदोलन में युवाओं का भविष्य और कांशीराम तथा जयप्रकाश नारायण जैसे आंदोलनों की आज की आवश्यकता

वर्तमान समय में अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठन युवाओं को अपने आंदोलनों में सम्मिलित कर रहे हैं। परंतु इन आंदोलनों की दिशा, उद्देश्य और कार्य...

वर्तमान समय में अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठन युवाओं को अपने आंदोलनों में सम्मिलित कर रहे हैं। परंतु इन आंदोलनों की दिशा, उद्देश्य और कार्यपद्धति अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। विशेष रूप से चंद्रशेखर आज़ाद ‘रावण’ द्वारा चलाया जा रहा भीम आर्मी आंदोलन कई बार विवादों और कानून-व्यवस्था की समस्याओं में घिरा रहा है। यह आंदोलन अक्सर भावनात्मक उकसावे, उग्र नारों और सड़क-आंदोलनों पर आधारित होता है।

आज जरूरत है कि युवा भावनाओं में बहकर किसी भी आंदोलन का हिस्सा बनने के बजाय विवेक, वैचारिक स्पष्टता और संविधान-समर्थित परिवर्तनकारी प्रयासों से जुड़ें—जैसे कि कांशीराम या जयप्रकाश नारायण द्वारा संचालित संगठित और दीर्घकालिक सोच वाले आंदोलन।

भीम आर्मी आंदोलन और युवाओं का भविष्य

1. भावनात्मक शोषण

भीम आर्मी जैसे आंदोलनों में दलित-बहुजन युवाओं की सामाजिक पीड़ा को उकसाया जाता है और उसे 'क्रांति' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन आंदोलन के पीछे कोई ठोस योजना, वैचारिक प्रशिक्षण या संगठनात्मक मार्गदर्शन नहीं होता।

2. शिक्षा और करियर में बाधा

युवा शिक्षा छोड़कर आंदोलनों में कूद पड़ते हैं। अनेक बार वे गैर-कानूनी गतिविधियों में फंस जाते हैं, जिससे उनके पुलिस रिकॉर्ड पर दाग लगते हैं। परिणामस्वरूप उनका पूरा भविष्य—सरकारी नौकरी, विदेश यात्रा, और सामाजिक प्रतिष्ठा—संकट में आ जाती है।

3. नेतृत्व का निजी लाभ

इन आंदोलनों का नेतृत्व अक्सर युवाओं की भीड़ का प्रयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए करता है। लेकिन गिरफ्तारी या मुकदमे जैसी स्थिति आने पर नेता पार्टी बदल लेते हैं, बयान बदल देते हैं, और युवा अदालतों के चक्कर काटते रह जाते हैं।

युवाओं पर NSA जैसी कठोर कार्रवाई और पैरवी की कमी

जब कोई युवा आंदोलन के दौरान हिंसात्मक बयानबाज़ी या टकराव में फंस जाता है, तो उस पर कई बार NSA (National Security Act) जैसे कठोर कानून लगा दिए जाते हैं।

और फिर होता है...

कोई वकील या संगठन पैरवी के लिए सामने नहीं आता

आंदोलन के नेता मीडिया में बयान देकर दूरी बना लेते हैं

परिवार टूटता है, और युवा का भविष्य तबाह हो जाता है

कोर्ट केस वर्षों तक चलता है, और समाज उसे अपराधी समझने लगता है

सच्चाई यह है:

“भीड़ में शामिल होना आसान है, पर गिरफ्तारी के बाद उस भीड़ में से कोई साथ नहीं देता।”

आज की ज़रूरत: वैचारिक, संगठित और संवैधानिक आंदोलन

1. कांशीराम मॉडल: संगठन, शिक्षा और सशक्तिकरण

कांशीराम ने बहुजन समाज को BAMCEF, DS4 और BSP के माध्यम से संगठित किया।

उन्होंने वैचारिक प्रशिक्षण, संविधान की समझ और चुनावी व्यवस्था में भागीदारी को प्राथमिकता दी।

उनका आंदोलन कैडर-बेस्ड और दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित था।

2. जयप्रकाश नारायण मॉडल: सम्पूर्ण क्रांति

जेपी आंदोलन में नैतिकता, अहिंसा और नेतृत्व निर्माण की भावना थी।

भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और तानाशाही के खिलाफ गांधीवादी आंदोलन शुरू किया गया।

इसी आंदोलन से देश को लालू यादव, नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी जैसे नेता मिले।

जेपी आंदोलन ने विरोध नहीं, विकल्प दिया — और युवाओं को सोचने, नेतृत्व करने और बदलने की दिशा दी।

भीम आर्मी जैसे आंदोलन, जो केवल नारों, आक्रोश और सड़कों तक सीमित हैं, युवाओं को भविष्यहीन, कानून-संघर्षित और सामाजिक रूप से हाशिए पर धकेल सकते हैं।

इसके विपरीत, कांशीराम और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं के आंदोलन युवाओं को विचार, संगठन, संविधान और नेतृत्व क्षमता से लैस करते हैं।

आज भारत को नारेबाज़ क्रांतिकारी नहीं, बल्कि रणनीतिक, संवैधानिक और शिक्षित परिवर्तनकारी युवाओं की जरूरत है।

- BK Bharat