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देश में बढ़ती आर्थिक असमानता: एक गंभीर सामाजिक चुनौती

विषय:   देश में बढ़ती आर्थिक असमानता: एक गंभीर सामाजिक चुनौती – नितिन गडकरी के वक्तव्य पर आधारित भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक और विकासशील...

विषय: देश में बढ़ती आर्थिक असमानता: एक गंभीर सामाजिक चुनौती

नितिन गडकरी के वक्तव्य पर आधारित

भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक और विकासशील देश के लिए यह चिंतन का विषय है कि आज भी गरीबी एक बड़ी समस्या बनी हुई है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा:
"
धीरे‑धीरे देश में गरीबों की संख्या बढ़ रही है, और कुछ अमीर लोगों के हाथों में धन केंद्रित होता जा रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए।"
यह वक्तव्य केवल एक राजनेता का विचार नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक और आर्थिक असमानता की स्वीकारोक्ति है, जो आज भारत के विकास के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी है।


आर्थिक असमानता की वास्तविकता

पिछले कुछ वर्षों में भारत में आर्थिक प्रगति अवश्य हुई है, लेकिन उसका लाभ समान रूप से सभी वर्गों तक नहीं पहुँचा है। कुछ गिने-चुने उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट घरानों की संपत्ति में जबरदस्त वृद्धि हुई है, जबकि दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग आज भी दो वक़्त की रोटी, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के टॉप 1% लोगों के पास देश की 40% से अधिक संपत्ति है, जबकि निचले 50% के पास मात्र 3%। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि सामाजिक-आर्थिक विषमता एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है।


इस असमानता के कारण

1.    शिक्षा और कौशल का अभाव:
गरीब वर्ग के लोग आज भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण से वंचित हैं। इससे वे बेहतर रोज़गार के अवसरों से कटे रहते हैं।

2.    रोज़गार के अवसरों की कमी:
असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या अधिक है, जहाँ आय स्थिर नहीं होती। वहीं तकनीक आधारित नौकरियों में गरीबों की भागीदारी न्यूनतम है।

3.    भूमि और संसाधनों पर कब्जा:
अधिकतर संसाधनों और सरकारी योजनाओं का लाभ प्रभावशाली और संपन्न वर्ग को ही मिलता है, जिससे गरीब और वंचित रह जाते हैं।

4.    नीतियों का असमान क्रियान्वयन:
गरीबों के लिए बनी योजनाएँ जमीनी स्तर तक पहुँचते-पहुँचते अपना प्रभाव खो देती हैं, और बिचौलिये या भ्रष्टाचार उसका लाभ उठा लेते हैं।


इसके दुष्परिणाम

  • सामाजिक तनाव और असंतोष:
    जब एक वर्ग अत्यधिक संपन्न हो और दूसरा रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए जूझता रहे, तो समाज में असंतुलन और विद्रोह की भावना जन्म लेती है।
  • अपराध और हिंसा में वृद्धि:
    रोज़गारहीनता और असमानता युवाओं को अपराध की ओर धकेल सकती है।
  • लोकतंत्र पर खतरा:
    जब धन और सत्ता चंद लोगों तक सीमित हो जाए, तो लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत— जन-भागीदारीखतरे में पड़ जाता है।

समाधान की दिशा में कदम

1.    समान शिक्षा प्रणाली और कौशल विकास:
सभी को एक जैसी शिक्षा और ट्रेनिंग मिले, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है। सरकारी स्कूलों और आईटीआई संस्थानों को सशक्त किया जाना चाहिए।

2.    स्वरोज़गार और स्टार्टअप को प्रोत्साहन:
छोटे व्यवसाय और स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए आसान ऋण और प्रशिक्षण मुहैया कराना होगा।

3.    सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन:
राशन, पेंशन, स्वास्थ्य और आवास जैसी योजनाओं को पारदर्शी और सरल बनाकर ज़रूरतमंदों तक पहुँचाना ज़रूरी है।

4.    प्रगतिशील कर नीति:
अमीर वर्ग से अधिक कर वसूलकर उसे गरीबों के उत्थान में लगाना सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।

5.    संपत्ति और आय का संतुलन:
बड़े उद्योगों को सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के अंतर्गत गरीबों के लिए कार्य करने की बाध्यता होनी चाहिए।


निष्कर्ष

नितिन गडकरी जी का यह बयान एक चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। जब देश की समृद्धि कुछ हाथों में सीमित हो जाए और बड़ी आबादी अभावग्रस्त जीवन जिए, तो यह लोकतंत्र, विकास और सामाजिक समरसतातीनों के लिए खतरे की घंटी है। आज ज़रूरत है एक समावेशी विकास मॉडल की, जहाँ हर नागरिक को समान अवसर, संसाधन और सम्मान मिले।

गरीबी का समाधान केवल सहायता से नहीं, बल्कि सशक्तिकरण (empowerment) से हो सकता है। और इसके लिए सरकार, समाज और प्रत्येक नागरिक को मिलकर प्रयास करना होगा।

 - B. K. Bharat