73 वर्षीय सिख महिला हरजित कौर को अमेरिका से निर्वासित किए जाने की घटना ने न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया है, बल्कि भारत की विदेश नीति...
73 वर्षीय सिख महिला हरजित कौर को अमेरिका से निर्वासित किए जाने की घटना ने न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया है, बल्कि भारत की विदेश नीति और प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करने की क्षमता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं।
हरजित कौर तीन दशकों से अधिक समय से अमेरिका में रह रही थीं। इस दौरान उन्होंने हर छह माह में इमिग्रेशन विभाग को अपनी स्थिति की सूचना दी। उनके वकीलों और परिवार ने अपील की थी कि उन्हें वाणिज्यिक उड़ान से सुरक्षित रूप से भारत भेजा जाए और अंतिम बार परिवार से मिलने का अवसर दिया जाए, परंतु यह मांग ठुकरा दी गई। निर्वासन के दौरान उन्हें 60-70 घंटे तक बिस्तर और शावर की सुविधा तक नहीं दी गई। घुटनों की सर्जरी से पीड़ित इस बुज़ुर्ग महिला को फर्श पर सोने और अपमानजनक परिस्थितियों में सफ़र करने के लिए मजबूर किया गया।
यह पूरा मामला न केवल अमेरिका की कठोर और अमानवीय इमिग्रेशन नीति को उजागर करता है, बल्कि भारत सरकार की कमज़ोर कूटनीति की पोल भी खोलता है। सवाल यह है कि क्या भारत सरकार अपने नागरिकों, विशेषकर बुज़ुर्ग और प्रवासी महिलाओं के अधिकारों और सम्मान की रक्षा करने में असमर्थ हो चुकी है?
हरजित कौर का मामला अकेला नहीं है। इस वर्ष हजारों भारतीय नागरिकों को इसी तरह से निर्वासित किया गया है। यह आंकड़ा बताता है कि हमारी विदेश नीति प्रवासी भारतीयों के हितों की रक्षा करने में कितनी नाकाम साबित हो रही है।
आज समय की मांग है कि भारत सरकार न केवल अमेरिका बल्कि हर उस देश से कड़े शब्दों में आपत्ति दर्ज कराए जहाँ भारतीयों के साथ मानवाधिकार उल्लंघन हो रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे एक मानवीय मुद्दा बनाकर उठाए।
हरजित कौर की पीड़ा एक चेतावनी है—अगर भारत अपने नागरिकों के लिए मज़बूत कूटनीतिक ढाल नहीं बनेगा, तो दुनिया भर में बसे करोड़ों भारतीय खुद को असुरक्षित और उपेक्षित महसूस करेंगे।