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पहला व अंतिम दलित क्रिकेटर : पलवणकर बालू

आरक्षण विरोधी कुछ मोहतर्मा कल से कह रही है की क्रिकेट में आरक्षण नही है इसलिए वो जीत गयी। जबकि; "क्रिकेट में अघोषित आरक्षण शुरू से रहा ...

आरक्षण विरोधी कुछ मोहतर्मा कल से कह रही है की क्रिकेट में आरक्षण नही है इसलिए वो जीत गयी। जबकि;

"क्रिकेट में अघोषित आरक्षण शुरू से रहा है जिसमे कम से कम दो खिलाड़ी मुस्लिम लेने चाहिए व इसके आधार पर 5 से ऊपर "आरक्षण विरोधी मोहतर्मा" के समाज से भर लिए जाते थे। एक समय जब अनिल कुंबले वग़ैरह खेलते थे 7 से ऊपर ले लिए जाते रहे। आप क्रिकेट इतिहास देख लीजिए "बैलेंस" बनाने के लिए 1 से 2 मुस्लिम खिलाड़ी जरूर लिए गए, इससे ज्यादा या एक भी नही लिया जा सकता था। लेकिन 1 से 2 हमेशा चयनकर्ताओं द्वारा लिया गया। यह "गंगा-जमुना तहजीब" ही वास्तविक आरक्षण है जो मुगलो के समय से चलती आई है जिसमे मुगल बैलेंस बनाने के लिए हिन्दुओ की तरफ से "ब्राह्मण व क्षत्रिय राजाओं" को दरबार मे रखते थे"

जब बाद में धीरे धीरे इसका विरोध होना शुरू हुआ तब "शुद्र अथार्त ओबीसी खिलाड़ियो" को लेना शुरू हुआ, उससे पहले ओबीसी के तौर पर केवल महाराष्ट्र की ओबीसी कृषक जाति भंडारी से आने वाले "विनोद कांबली" ही प्रसिद्ध हो पाए। अब रिंकू सिंह ओबीसी की नाई जाति व दो यादव खिलाडी काफी बेहतरीन खेल रहे है। 

अनुसूचित जाति की तरफ से क्रिकेट इतिहास में केवल चमार जाति के पलवणकर बालू ही खेल पाए। 

1.बालू का जन्म 19 मार्च 1876 को बॉम्बे प्रेसिडेंसी के धारवाड़ में चमार जाति में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही थे। बालू ही नही बल्कि उनके तीन भाई, पलवंकर शिवराम , विट्ठल पलवंकर और पलवंकर गणपत भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर थे। 

2.वर्ष 1896 में परमानन्ददास जीवनदास जिमखाना की तरफ से उन्होंने बॉम्बे क्वाड्रैंगुलर टूर्नामेंट में खेला। इसके बाद बॉम्बे बेरार और सेंट्रल इंडियन रेलवे व कॉर्पोरेट क्रिकेट टीम के लिए भी खेला। वर्ष 1911 के इंग्लैड दौरे में उन्होंने पटियाला के महाराजा के नेतृत्व वाली अखिल भारतीय टीम की तरफ से खेला, जँहा जहाँ बालू के अति उत्कृष्ट प्रदर्शन की प्रशँसा सभी ने की। इस दौरे में उन्हें भारत के रोड्स के रूप में जाना जाने लगा। 

3.जातीय भेदभाव

क्रिकेट के कैरियर मे बालू को निचली जाति का बताकर समान नही समझा गया। हर स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। जब वह पुणे में खेलते थे, तो Tea break के समय उनके लिए अलग से चाय बाहर डिस्पोजल ग्लास में भेजी जाती थी। इस चाय को वह पवेलियन में जाकर नही पी सकते थे। दोपहर का भोजन उन्हें अलग टेबल पर दिया जाता था। उनके लिए दलित जाति का एक अन्य व्यक्ति रखा जाता था जो मैच के दौरान चेहरा धोने के लिए पानी लेकर आता था। सबसे मुख्य जातिवाद उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद भी क्वाड्रैंगुलर टूर्नामेंट में टीम की कप्तानी नही दी गयी। 

उन्हें भारतीय क्रिकेट इतिहास के सबसे महान क्रिकेटरों में से एक माना जाता है। 

3.राजनैतिक व सामाजिक आंदोलन

1910 के दशक में उनकी मुलाकात डॉक्टर अम्बेडकर से हुई और दोनो घनिष्ट मित्र बन गए, जिसमे समाजिक आंदोलन में बाबा साहब की प्रशँसा व सहयोग करते रहे। लेकिन 1932 में अलग निर्वाचन मण्डल के मुद्दे पर गाँधी ग्रुप उन्हें अपने ग्रुप मे शामिल करने में कामयाब रहा और उनसे "राजा मुंजे संधि" पर हस्ताक्षर करवा लिए। यह उनकी कमजोरी रही। 

वर्ष 1955 में उनकी मृत्यु हो गयी जिसमे देश के राष्ट्रीय नेताओ के साथ साथ पूरी क्रिकेट टीम ने हिस्सा लिया।।

- विकास कुमार जाटव